मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ
यूँ भी अक्सर बहार आई है
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हर क़दम पर है एहतिसाब-ए-अमल
जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या
नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं
ये महर-ओ-माह-ओ-कवाकिब की बज़्म-ए-ला-महदूद
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों
फ़ैज़ पहुँचे हैं जो बहारों से
फ़ैज़-ए-अय्याम-ए-बहार अहल-ए-क़फ़स क्या जानें
हज़ारों तमन्नाओं के ख़ूँ से हम ने