तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
जान बहुत शर्मिंदा हैं
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निरवान
मिरा ज़ेहन मुझ को रहा करे
ये मोजज़ा भी किसी की दुआ का लगता है
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
मिरे सारे हर्फ़ तमाम हर्फ़ अज़ाब थे
मैं जिस को अपनी गवाही में ले के आया हूँ
हवाएँ अन-पढ़ हैं
सब लोग अपने अपने क़बीलों के साथ थे
वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी
ये मो'जिज़ा भी किसी की दुआ का लगता है
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
हर इक से पूछते फिरते हैं तेरे ख़ाना-ब-दोश