ये मोजज़ा भी किसी की दुआ का लगता है
ये शहर अब भी उसी बे-वफ़ा का लगता है
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कोई जुनूँ कोई सौदा न सर में रक्खा जाए
गली-कूचों में हंगामा बपा करना पड़ेगा
बहुत मुश्किल ज़मानों में भी हम अहल-ए-मोहब्बत
ये सारी जन्नतें ये जहन्नम अज़ाब ओ अज्र
दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ
खज़ाना-ए-ज़र-ओ-गौहर पे ख़ाक डाल के रख
दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो
हमें भी आफ़ियत-ए-जाँ का है ख़याल बहुत
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
वो जिस के नाम की निस्बत से रौशनी था वजूद
इक ख़्वाब ही तो था जो फ़रामोश हो गया
सितारों से भरा ये आसमाँ कैसा लगेगा