मिरे सारे हर्फ़ तमाम हर्फ़ अज़ाब थे
मिरे कम-सुख़न ने सुख़न किया तो ख़बर हुई
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मोहब्बत की एक नज़्म
घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ
बैलन्स-शीट
ये सारी जन्नतें ये जहन्नम अज़ाब ओ अज्र
ख़ल्क़ ने इक मंज़र नहीं देखा बहुत दिनों से
दिल उन के साथ मगर तेग़ और शख़्स के साथ
हर नई नस्ल को इक ताज़ा मदीने की तलाश
और हवा चुप रही
बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है
बहुत मुश्किल ज़मानों में भी हम अहल-ए-मोहब्बत
अज़ाब-ए-वहशत-ए-जाँ का सिला न माँगे कोई