आप इक ज़हमत-ए-नज़र तो करें
कौन बेहोश हो नहीं सकता
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सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में
बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर 'अदम'
जिन को मल्लाह छोड़ जाते हैं
हाथ से खो न बैठना उस को
जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
मैं रास्ते का बोझ हूँ मेरा न कर ख़याल
जो अक्सर बार-वर होने से पहले टूट जाते थे
देखा है किस निगाह से तू ने सितम-ज़रीफ़
ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब
साक़ी ज़रा निगाह मिला कर तो देखना
काफ़ी वसीअ सिलसिला-ए-इख़्तियार है
हवा सनके ख़ारों की बड़ी तकलीफ़ होती है