साक़ी ज़रा निगाह मिला कर तो देखना
कम्बख़्त होश में तो नहीं आ गया हूँ मैं
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ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया
खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप
आज फिर रूह में इक बर्क़ सी लहराती है
दुआएँ दे के जो दुश्नाम लेते रहते हैं
जुनूँ अब मंज़िलें तय कर रहा है
अरे मय-गुसारो सवेरे सवेरे
तही सा जाम तो था गिर के बह गया होगा
मैं रास्ते का बोझ हूँ मेरा न कर ख़याल
बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया
ऐ गदागर ख़ुदा का नाम न ले
हवा सनके ख़ारों की बड़ी तकलीफ़ होती है