सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ
जवाब दे के मुझे और शर्मसार न कर
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1168) Peoples Rate This
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया
अब दो-आलम से सदा-ए-साज़ आती है मुझे
तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया
मुंक़लिब सूरत-ए-हालात भी हो जाती है
ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
चलते चलते तमाम रस्तों से
जुनूँ अब मंज़िलें तय कर रहा है
जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा
ऐ दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं
आगही में इक ख़ला मौजूद है