ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब
हल्क़ा-ए-दाम टूट जाता है
ज़िंदगी की गिरफ़्त में आ कर
मौत का जाम टूट जाता है
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
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माह-ओ-अंजुम के सर्द होंटों पर
ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म
ज़बान-ए-होश से ये कुफ़्र सरज़द हो नहीं सकता
शाम है और पार नद्दी के
हर दिल-फ़रेब चीज़ नज़र का ग़ुबार है
ख़ाली है अभी जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
उरूस-ए-सुब्ह ने ली है मचल के अंगड़ाई
सितारों के आगे जो आबादियाँ हैं
तही सा जाम तो था गिर के बह गया होगा
कितनी सदियों से अज़्मत-ए-आदम
ज़िंदगी ज़ोर है रवानी का
तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहीं