आँख का ए'तिबार क्या करते
जो भी देखा वो ख़्वाब में देखा
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आख़िरत का ख़याल भी साक़ी
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद
हँस हँस के जाम जाम को छलका के पी गया
वस्ल की शब है और सीने में
ख़ू-ए-लैल-ओ-नहार देखी है
ज़ख़्म दिल के अगर सिए होते
छोड़ा नहीं ख़ुदी को दौड़े ख़ुदा के पीछे
मुश्किल ये आ पड़ी है कि गर्दिश में जाम है
तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहीं
बस इस क़दर है ख़ुलासा मिरी कहानी का
आता है कौन दर्द के मारों के शहर में
ज़बाँ पर आप का नाम आ रहा था