वस्ल की शब है और सीने में
एक मदहोश आग का रस है
आज सारे चराग़ गुल कर दो
आज अंधेरा बड़ा मुक़द्दस है
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
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चलते चलते तमाम रस्तों से
मिरा इख़्लास भी इक वज्ह-ए-दिल-आज़ारी है
गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
ऐ गदागर ख़ुदा का नाम न ले
छेड़ो तो उस हसीन को छेड़ो जो यार हो
गोरियों कालियों ने मार दिया
मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस
जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
जुम्बिश-ए-काकुल-ए-महबूब से दिन ढलता है
आख़िरत का ख़याल भी साक़ी
दिल डूब न जाएँ प्यासों के तकलीफ़ ज़रा फ़रमा देना
पीर-ए-मुग़ाँ से हम को कोई बैर तो नहीं