गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
सरकार देख कर मिरी सरकार देख कर
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
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Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
Habib Jalib
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ज़ुल्मतों को शराब-ख़ाने से
गुल्सितानों में घूम लेता हूँ
बढ़ के तूफ़ान को आग़ोश में ले ले अपनी
जिन को दौलत हक़ीर लगती है
ख़ू-ए-लैल-ओ-नहार देखी है
जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत
तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया
हर परी-वश को ख़ुदा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
हश्र तक भी अगर सदाएँ दें
ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई