हश्र तक भी अगर सदाएँ दें
बीत कर वक़्त फिर नहीं मुड़ते
सोच कर तोड़ना इन्हें साक़ी
टूट कर जाम फिर नहीं जुड़ते
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
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दिल है बड़ी ख़ुशी से इसे पाएमाल कर
शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
मरमरीं मरक़दों पे वक़्त-ए-सहर
बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा
हद से बढ़ कर हसीन लगते हो
ख़राबात-ए-मंज़िल गह-ए-कहकशाँ है
वो सूरज इतना नज़दीक आ रहा है
आख़िरत का ख़याल भी साक़ी
आप इक ज़हमत-ए-नज़र तो करें
ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है
उरूस-ए-सुब्ह ने ली है मचल के अंगड़ाई
मिरे दिल की उदास वादी में