मिरे दिल की उदास वादी में
ग़ुंचा-हा-ए-मलूल खिलते हैं
गुल्सितानों पे ही नहीं मौक़ूफ़
जंगलों में भी फूल खिलते हैं
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साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ़ तो होगी
ऐ ख़राबात के ख़ुदावंदो
तीरगी के घने हिजाबों में
जिस से छुपना चाहता हूँ मैं 'अदम'
मुश्किल ये आ पड़ी है कि गर्दिश में जाम है
उरूस-ए-सुब्ह ने ली है मचल के अंगड़ाई
तुम्हारे हुस्न को मेरी नज़र लगी है ज़रूर
गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
इक शिकस्ता से मक़बरे के क़रीब
छेड़ो तो उस हसीन को छेड़ो जो यार हो
मुझ से चुनाँ-चुनीं न करो मैं नशे मैं हूँ
दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा