तुम्हारे हुस्न को मेरी नज़र लगी है ज़रूर
कहाँ हो पहले से तब्दील हो गए हो तुम
ख़ुदा करे मिरी आँखों से नूर छिन जाए
निगाह-ए-शौक़ में तहलील हो गए हो तुम
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या दुपट्टा न लीजिए सर पर
जिस से छुपना चाहता हूँ मैं 'अदम'
और अरमान इक निकल जाता
दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा
आँख का ए'तिबार क्या करते
फ़क़ीर किस दर्जा शादमाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा
मैं रास्ते का बोझ हूँ मेरा न कर ख़याल
तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहीं
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ
जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
अगरचे रोज़-ए-अज़ल भी यही अँधेरा था