या दुपट्टा न लीजिए सर पर
या दुपट्टा सँभाल कर चलिए
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हद से बढ़ कर हसीन लगते हो
हर परी-वश को ख़ुदा तस्लीम कर लेता हूँ मैं
सब को पहुँचा के उन की मंज़िल पर
मैं यूँ तलाश-ए-यार में दीवाना हो गया
छेड़ो तो उस हसीन को छेड़ो जो यार हो
ख़ैरात सिर्फ़ इतनी मिली है हयात से
काफ़ी वसीअ सिलसिला-ए-इख़्तियार है
जिन को दौलत हक़ीर लगती है
पर लगा कर उड़ेगा नाम तिरा
साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ़ तो होगी
किसी हसीं से लिपटना अशद ज़रूरी है
मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस