मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस
जीने वाले कमाल करते हैं
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मशहूर इक सवाल किया था करीम ने
दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा
जहाँ वो ज़ुल्फ़-ए-बरहम कारगर महसूस होती है
इतना तो दोस्ती का सिला दीजिए मुझे
गो तिरी ज़ुल्फ़ों का ज़िंदानी हूँ मैं
बस इस क़दर है ख़ुलासा मिरी कहानी का
लहरा के झूम झूम के ला मुस्कुरा के ला
हल्का हल्का सुरूर है साक़ी
ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है
अब दो-आलम से सदा-ए-साज़ आती है मुझे
ज़िंदगी है इक किराए की ख़ुशी