मैं यूँ तलाश-ए-यार में दीवाना हो गया
काबे में पाँव रक्खा तो बुत-ख़ाना हो गया
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ज़ुल्फ़-ए-बरहम सँभाल कर चलिए
हवा सनके ख़ारों की बड़ी तकलीफ़ होती है
तही सा जाम तो था गिर के बह गया होगा
और तो दिल को नहीं है कोई तकलीफ़ 'अदम'
मायूस हो गई है दुआ भी जबीन भी
झाड़ कर गर्द-ए-ग़म-ए-हस्ती को उड़ जाऊँगा मैं
सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से
शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
गुल्सितानों में घूम लेता हूँ
वस्ल की शब है और सीने में
हल्का हल्का सुरूर है साक़ी