आख़िरत का ख़याल भी साक़ी
बादा-ए-वहम का अयाग़ न हो
इस लिए बंदगी से हूँ बेज़ार
ख़ुल्द भी एक सब्ज़ बाग़ न हो
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तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहीं
मैं उम्र भर जवाब नहीं दे सका 'अदम'
दिन गुज़र जाएँगे सरकार कोई बात नहीं
कितनी सदियों से अज़्मत-ए-आदम
ऐ ख़राबात के ख़ुदावंदो
एक रेज़ा तिरे तबस्सुम का
सवाल कर के मैं ख़ुद ही बहुत पशेमाँ हूँ
आज फिर रूह में इक बर्क़ सी लहराती है
मुस्कुरा कर ख़िताब करते हो
गोरियों कालियों ने मार दिया
शाम है और पार नद्दी के
किसी जानिब से कोई मह-जबीं आने ही वाला है