तड़प कर मैं ने तौबा तोड़ डाली
तिरी रहमत पे इल्ज़ाम आ रहा था
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ऐ मिरा जाम तोड़ने वाले
सूरत के आइने में दिल-ए-पाएमाल देख
ख़ू-ए-लैल-ओ-नहार देखी है
किसी हसीं से लिपटना अशद ज़रूरी है
वो अबरू याद आते हैं वो मिज़्गाँ याद आते हैं
हम को शाहों की अदालत से तवक़्क़ो' तो नहीं
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद
वो बातें तिरी वो फ़साने तिरे
दिल को दिल से काम रहेगा
ख़राबात-ए-मंज़िल गह-ए-कहकशाँ है
जेब ख़ाली है 'अदम' मय क़र्ज़ पर मिलती नहीं
पीर-ए-मुग़ाँ से हम को कोई बैर तो नहीं