तबाह हो के हक़ाएक़ के खुरदुरे-पन से
तसव्वुरात की ता'मीर कर रहा हूँ मैं
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दफ़्न हैं साग़रों में हंगामे
गोरियों कालियों ने मार दिया
मिरे दिल की उदास वादी में
तड़प कर मैं ने तौबा तोड़ डाली
ज़ौक़-ए-परवाज़ अगर रहे ग़ालिब
शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
गुल्सितानों में घूम लेता हूँ
साक़ी ज़रा निगाह मिला कर तो देखना
ऐ मिरा जाम तोड़ने वाले
बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हों आप
मुझे तौबा का पूरा अज्र मिलता है उसी साअत