दफ़्न हैं साग़रों में हंगामे
कितनी उजड़ी हुई बहारों के
नाम कुंदा हैं आबगीनों पर
कितने डूबे हुए सितारों के
Mohsin Naqvi
Gulzar
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जो भी तेरे फ़क़ीर होते हैं
आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता
वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैं
रक़्स करता हूँ जाम पीता हूँ
पहले बड़ी रग़बत थी तिरे नाम से मुझ को
जाम उठा और फ़ज़ा को रक़्साँ कर
मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस
शब की बेदारियाँ नहीं अच्छी
दिल है बड़ी ख़ुशी से इसे पाएमाल कर
ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म
तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया
जिस से छुपना चाहता हूँ मैं 'अदम'