दिल की हस्ती बिखर गई होती
रूह के ज़ख़्म भर गए होते
ज़िंदगी आप की नवाज़िश है
वर्ना हम लोग मर गए होते
Wasi Shah
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Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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Jaun Eliya
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बोले कोई हँस कर तो छिड़क देते हैं जाँ भी
फिर आज 'अदम' शाम से ग़मगीं है तबीअत
अरे मय-गुसारो सवेरे सवेरे
मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस
गोरियों कालियों ने मार दिया
हँस के बोला करो बुलाया करो
ख़ाली है अभी जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
हुजूम-ए-हश्र में खोलूँगा अद्ल का दफ़्तर
गुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है
आप की आँख अगर आज गुलाबी होगी
कितनी सदियों से अज़्मत-ए-आदम
आता है कौन दर्द के मारों के शहर में