फिर आज 'अदम' शाम से ग़मगीं है तबीअत
फिर आज सर-ए-शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1442) Peoples Rate This
सब को पहुँचा के उन की मंज़िल पर
मोहतात ओ होशियार तो बे-इंतिहा हूँ मैं
सो रही है गुलों के बिस्तर पर
कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ
ख़ाली है अभी जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ
लहरा के झूम झूम के ला मुस्कुरा के ला
साक़ी शराब ला कि तबीअ'त उदास है
गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
हम और लोग हैं हम से बहुत ग़ुरूर न कर
इक हसीं आँख के इशारे पर
जहाँ वो ज़ुल्फ़-ए-बरहम कारगर महसूस होती है
जेब ख़ाली है 'अदम' मय क़र्ज़ पर मिलती नहीं