हम और लोग हैं हम से बहुत ग़ुरूर न कर
कलीम था जो तिरा नाज़ सह गया होगा
Wasi Shah
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Mir Taqi Mir
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Anwar Masood
Rahat Indori
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जब तिरे नैन मुस्कुराते हैं
मैं और उस ग़ुंचा-दहन की आरज़ू
रूह को एक आह का हक़ है
दिल को दिल से काम रहेगा
वो अबरू याद आते हैं वो मिज़्गाँ याद आते हैं
जिस वक़्त भी मौज़ूँ सी कोई बात हुई है
छेड़ो तो उस हसीन को छेड़ो जो यार हो
देखा है किस निगाह से तू ने सितम-ज़रीफ़
ऐ दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं
तौबा का तकल्लुफ़ कौन करे हालात की निय्यत ठीक नहीं
वो मिले भी तो इक झिझक सी रही
मतलब मुआ'मलात का कुछ पा गया हूँ मैं