हिमायत अली शाएर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हिमायत अली शाएर

हिमायत अली शाएर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हिमायत अली शाएर
नामहिमायत अली शाएर
अंग्रेज़ी नामHimayat Ali Shayar
जन्म की तारीख1930
जन्म स्थानKarachi

ज़िंदगी की बात सुन कर क्या कहें

ये कैसा क़ाफ़िला है जिस में सारे लोग तन्हा हैं

तुझ से वफ़ा न की तो किसी से वफ़ा न की

तारीकी में लिपटी हुई पुर-हौल ख़मोशी

सूरज को ये ग़म है कि समुंदर भी है पायाब

सूरज के उजाले में चराग़ाँ नहीं मुमकिन

सिर्फ़ ज़िंदा रहने को ज़िंदगी नहीं कहते

शम्अ के मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-नियाज़

'शाइर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप

रौशनी में अपनी शख़्सियत पे जब भी सोचना

फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस न कर

मैं सोचता हूँ इस लिए शायद मैं ज़िंदा हूँ

मैं सच तो बोलता हूँ मगर ऐ ख़ुदा-ए-हर्फ़

मैं कुछ न कहूँ और ये चाहूँ कि मिरी बात

किस लिए कीजे किसी गुम-गश्ता जन्नत की तलाश

इस जहाँ में तो अपना साया भी

इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

ईमाँ भी लाज रख न सका मेरे झूट की

हम भी हैं किसी कहफ़ के असहाब के मानिंद

हर तरफ़ इक मुहीब सन्नाटा

हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझे

अब न कोई मंज़िल है और न रहगुज़र कोई

यूसुफ़-ए-सानी

तज़ाद

मुद्दत के बाद

मादर-ए-वतन का नौहा

जवाब

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