तुझ से वफ़ा न की तो किसी से वफ़ा न की
किस तरह इंतिक़ाम लिया अपने आप से
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(979) Peoples Rate This
शम्अ के मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-नियाज़
मैं जो कुछ सोचता हूँ अब तुम्हें भी सोचना होगा
कब तक रहूँ मैं ख़ौफ़-ज़दा अपने आप से
इस शहर-ए-ख़ुफ़्तगाँ में कोई तो अज़ान दे
हरीफ़-ए-विसाल
जब तक ज़मीं पे रेंगते साए रहेंगे हम
हो चुकी अब शाइ'री लफ़्ज़ों का दफ़्तर बाँध लो
दूसरा तजरबा
हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए
नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए
ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के