इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए
चमकी जो ज़रा धूप तो जलने लगे साए
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
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चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब
मैं सच तो बोलता हूँ मगर ऐ ख़ुदा-ए-हर्फ़
तज़ाद
आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना
रौशनी में अपनी शख़्सियत पे जब भी सोचना
यूसुफ़-ए-सानी
बगूला
सूरज को ये ग़म है कि समुंदर भी है पायाब
'शाइर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप
अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं
शम्अ के मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-नियाज़