इस जहाँ में तो अपना साया भी
रौशनी हो तो साथ चलता है
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सूरज को ये ग़म है कि समुंदर भी है पायाब
हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
ज़िंदगी की बात सुन कर क्या कहें
मुद्दत के बाद
आज की शब जैसे भी हो मुमकिन जागते रहना
हारून की आवाज़
तज़ाद
किस लिए कीजे किसी गुम-गश्ता जन्नत की तलाश
मैं सच तो बोलता हूँ मगर ऐ ख़ुदा-ए-हर्फ़
ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के
यम-ब-यम फैला हुआ है प्यास का सहरा यहाँ