किस लिए कीजे किसी गुम-गश्ता जन्नत की तलाश
जब कि मिट्टी के खिलौनों से बहल जाते हैं लोग
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1014) Peoples Rate This
जो कुछ भी गुज़रता है मिरे दिल पे गुज़र जाए
सूरज के उजाले में चराग़ाँ नहीं मुमकिन
तख़ातुब है तुझ से ख़याल और का है
अब न कोई मंज़िल है और न रहगुज़र कोई
फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस न कर
हर तरफ़ इक मुहीब सन्नाटा
'शाइर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप
इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए
इस जहाँ में तो अपना साया भी
साए चमक रहे थे सियासत की बात थी
बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है
मेरा शुऊ'र मुझ को ये आज़ार दे गया