हम भी हैं किसी कहफ़ के असहाब के मानिंद
ऐसा न हो जब आँख खुले वक़्त गुज़र जाए
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तख़ातुब है तुझ से ख़याल और का है
यूसुफ़-ए-सानी
नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए
दूसरा तजरबा
यम-ब-यम फैला हुआ है प्यास का सहरा यहाँ
ये बात तो नहीं है कि मैं कम स्वाद था
मैं सोचता हूँ इस लिए शायद मैं ज़िंदा हूँ
हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब
हर तरफ़ इक मुहीब सन्नाटा
रात सुनसान दश्त ओ दर ख़ामोश