अपने किसी अमल पे नदामत नहीं मुझे
था नेक-दिल बहुत जो गुनहगार मुझ में था
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मैं जो कुछ सोचता हूँ अब तुम्हें भी सोचना होगा
हरीफ़-ए-विसाल
नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए
हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग
मैं सच तो बोलता हूँ मगर ऐ ख़ुदा-ए-हर्फ़
यम-ब-यम फैला हुआ है प्यास का सहरा यहाँ
चाँद ने आज जब इक नाम लिया आख़िर-ए-शब
मंज़िल के ख़्वाब देखते हैं पाँव काट के
हारून की आवाज़
ज़िंदगी की बात सुन कर क्या कहें
मेरा शुऊ'र मुझ को ये आज़ार दे गया
दस्तक हवा ने दी है ज़रा ग़ौर से सुनो