कश्ती चला रहा है मगर किस अदा के साथ
हम भी न डूब जाएँ कहीं ना-ख़ुदा के साथ
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वो जो तेरे फ़क़ीर होते हैं
ऐ मिरा जाम तोड़ने वाले
शिकन न डाल जबीं पर शराब देते हुए
आप की आँख अगर आज गुलाबी होगी
काफ़ी वसीअ सिलसिला-ए-इख़्तियार है
जा रहा था हरम को मैं लेकिन
ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म
मैं बद-नसीब हूँ मुझ को न दे ख़ुशी इतनी
मौत का सर्द हाथ भी साक़ी
सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में
ख़राबात-ए-मंज़िल गह-ए-कहकशाँ है
दिल है बड़ी ख़ुशी से इसे पाएमाल कर