बाज़ औक़ात किसी और के मिलने से 'अदम'
अपनी हस्ती से मुलाक़ात भी हो जाती है
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Habib Jalib
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1273) Peoples Rate This
जिन को मल्लाह छोड़ जाते हैं
हसीन नग़्मा-सराओ! बहार के दिन हैं
गिरते हैं लोग गर्मी-ए-बाज़ार देख कर
आज फिर रूह में इक बर्क़ सी लहराती है
मिरा इख़्लास भी इक वज्ह-ए-दिल-आज़ारी है
जी चाहता है आज 'अदम' उन को छेड़िए
मुद्दआ दूर तक गया लेकिन
एक ना-मक़बूल क़ुर्बानी हूँ मैं
गुलों को खिल के मुरझाना पड़ा है
चलते चलते तमाम रस्तों से
मरमरीं मरक़दों पे वक़्त-ए-सहर
जा रहा था हरम को मैं लेकिन