गंतव्य Poetry (page 48)

जुनून-ए-इश्क़ का जो कुछ हुआ अंजाम क्या कहिए

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

पहुँच के जो सर-ए-मंज़िल बिछड़ गया मुझ से

अकबर हैदराबादी

कुल आलम-ए-वुजूद कि इक दश्त-ए-नूर था

अकबर हैदराबादी

दिल दबा जाता है कितना आज ग़म के बार से

अकबर हैदराबादी

बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा

अकबर हैदराबादी

आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है

अकबर हैदराबादी

किस चमन की ख़ाक में फूलों का मुस्तक़बिल नहीं

अकबर हैदरी

मदरसा अलीगढ़

अकबर इलाहाबादी

ख़ुदा अलीगढ़ की मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे

अकबर इलाहाबादी

जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया

अकबर इलाहाबादी

फ़लसफ़ी को बहस के अंदर ख़ुदा मिलता नहीं

अकबर इलाहाबादी

हज़ार मंज़िल-ए-ग़म से गुज़र चुके लेकिन

अजमल अजमली

तिरी नज़र भी नहीं हर्फ़-ए-मुद्दआ भी नहीं

अजमल अजमली

रास्ते के पेच-ओ-ख़म क्या शय हैं सोचा ही नहीं

अजमल अजमली

आज़ार बहुत लज़्ज़त-ए-आज़ार बहुत है

अजमल अजमली

हसरतें आ आ के जम्अ हो रही हैं दिल के पास

आजिज़ मातवी

मौजूद हैं वो भी बालीं पर अब मौत का टलना मुश्किल है

आजिज़ मातवी

क्यूँ कहूँ कोई क़द-आवर नहीं आया अब तक

आजिज़ मातवी

जब कभी मद्द-ए-मुक़ाबिल वो रुख़-ए-ज़ेबा हुआ

आजिज़ मातवी

हसरतें आ आ के जम्अ हो रही हैं दिल के पास

आजिज़ मातवी

दर्द-ए-मुसलसल से आहों में पैदा वो तासीर हुई

आजिज़ मातवी

मुख़ालिफ़ आँधियों में अज़्म के दीपक जलाता हूँ

अजीत सिंह हसरत

इश्क़ जन्मों का है सफ़र शायद

अजीत सिंह हसरत

अगर फ़क़ीर से मिलना है तो सँभल पहले

अजीत सिंह हसरत

फूलों में वो ख़ुशबू वो सबाहत नहीं आई

ऐतबार साजिद

मुझे वो कुंज-ए-तन्हाई से आख़िर कब निकालेगा

ऐतबार साजिद

ज़ुल्मतों में गो ठहरने को ठहर जाते हैं लोग

ऐश बर्नी

हर इक शय पर बहार-ए-ज़िंदगी महसूस करता हूँ

ऐश बर्नी

गामज़न हैं हम मुसलसल अजनबी मंज़िल की सम्त

ऐन इरफ़ान

क़ल्ब की बंजर ज़मीं पर ख़्वाहिशें बोते हुए

ऐन इरफ़ान

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