जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था

जश्न था ऐश-ओ-तरब की इंतिहा थी मैं न था

यार के पहलू में ख़ाली मेरी जा थी मैं न था

उस ने कब बरख़ास्त ऐ दिल महफ़िल-ए-मेराज की

किस से पूछूँ रात कम थी या सवा थी में न था

मैं तड़प कर मर गया देखा न उस ने झाँक कर

उस सितमगर को अज़ीज़ अपनी हया थी मैं न था

वादा ले लेता कि खिलवाना न मुझ को ठोकरें

आलम-ए-अर्वाह में जिस जा क़ज़ा थी मैं न था

सर्फ़ करता किस ख़ुशी से जा के उस में अपनी ख़ाक

क्या कहूँ जिस दिन बनाई कर्बला थी मैं न था

मुँह न खुल सकता न होते हम-कलाम उन से कलीम

उम्र भर हसरत ही रहती बात क्या थी मैं न था

ले गई थी मुझ को हसरत जानिब-ए-ख़ुद-रफ़्तगी

जिस तरफ़ को मंज़िल-ए-बीम-ओ-रजा थी मैं न था

दिल उलट जाता मिरा या दम निकल जाता मिरा

शुक्र है जब लन-तरानी की सदा थी मैं न था

लाला-ओ-गुल को बचा लेता ख़िज़ाँ से ऐ 'शरफ़'

बाग़ में जिस वक़्त नाज़िल ये बला थी मैं न था

(719) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Jashn Tha Aish-o-tarab Ki Intiha Thi Main Na Tha In Hindi By Famous Poet Agha Hajju Sharaf. Jashn Tha Aish-o-tarab Ki Intiha Thi Main Na Tha is written by Agha Hajju Sharaf. Complete Poem Jashn Tha Aish-o-tarab Ki Intiha Thi Main Na Tha in Hindi by Agha Hajju Sharaf. Download free Jashn Tha Aish-o-tarab Ki Intiha Thi Main Na Tha Poem for Youth in PDF. Jashn Tha Aish-o-tarab Ki Intiha Thi Main Na Tha is a Poem on Inspiration for young students. Share Jashn Tha Aish-o-tarab Ki Intiha Thi Main Na Tha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.