गंतव्य Poetry (page 25)

अबू-तालिब के बेटे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गली-कूचों में हंगामा बपा करना पड़ेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

न दे जो दिल ही दुहाई तो कोई बात नहीं

इफ़तिख़ार अहमद फख्र

शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब

इफ़्तिख़ार आज़मी

शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब

इफ़्तिख़ार आज़मी

उस की इक दुनिया हूँ मैं और मेरी इक दुनिया है वो

इब्राहीम अश्क

शीशे का आदमी हूँ मिरी ज़िंदगी है क्या

इब्राहीम अश्क

क्या क्या हैं गिले उस को बता क्यूँ नहीं देता

इब्न-ए-रज़ा

फिर शाम हुई

इब्न-ए-इंशा

यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ

हुरमतुल इकराम

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

ठहरेगा वही रन में जो हिम्मत का धनी है

हुरमतुल इकराम

जो मंज़िल तक जा के और कहीं मुड़ जाए

हुमैरा राहत

बारिश के क़तरे के दुख से ना-वाक़िफ़ हो

हुमैरा राहत

तज़ईन-ए-बज़्म-ए-ग़म के लिए कोई शय तो हो

होश तिर्मिज़ी

मिलता नहीं मिज़ाज ख़ुद अपनी अदा में है

होश तिर्मिज़ी

गो दाग़ हो गए हैं वो छाले पड़े हुए

होश तिर्मिज़ी

वो मेरे शीशा-ए-दिल दिल पर ख़राश छोड़ गया

हीरानंद सोज़

कोई मोनिस नहीं मेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं

हीरानंद सोज़

अब न कोई मंज़िल है और न रहगुज़र कोई

हिमायत अली शाएर

नाला-ए-ग़म शो'ला-असर चाहिए

हिमायत अली शाएर

हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर

अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं

हिमायत अली शाएर

अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो

हिमायत अली शाएर

आँख की क़िस्मत है अब बहता समुंदर देखना

हिमायत अली शाएर

पहले भी जहाँ पर बिछड़े थे वही मंज़िल थी इस बार मगर

हिलाल फ़रीद

वक़्त ने रंग बहुत बदले क्या कुछ सैलाब नहीं आए

हिलाल फ़रीद

बहुत कठिन है डगर थोड़ी दूर साथ चलो

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

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