गंतव्य Poetry (page 28)

बाज़ार-ए-दहर में तिरी मंज़िल कहाँ न थी

हैदर अली आतिश

आख़िर-ए-कार चले तीर की रफ़्तार क़दम

हैदर अली आतिश

आइना सीना-ए-साहब-नज़राँ है कि जो था

हैदर अली आतिश

शरर-अफ़शाँ वो शरर-ख़ू भी नहीं

हफ़ीज़ ताईब

यारा-ए-गुफ़्तुगू नहीं आँखों में दम नहीं

हाफ़िज़ लुधियानवी

ज़िंदगी फ़िरदौस-ए-गुम-गश्ता को पा सकती नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

तराना-ए-पाकिस्तान

हफ़ीज़ जालंधरी

शाएर

हफ़ीज़ जालंधरी

शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को

हफ़ीज़ जालंधरी

ओ दिल तोड़ के जाने वाले दिल की बात बताता जा

हफ़ीज़ जालंधरी

कोई चारा नहीं दुआ के सिवा

हफ़ीज़ जालंधरी

ख़ून बन कर मुनासिब नहीं दिल बहे

हफ़ीज़ जालंधरी

जवानी के तराने गा रहा हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

इश्क़ में छेड़ हुई दीदा-ए-तर से पहले

हफ़ीज़ जालंधरी

हयात-ए-जावेदाँ वाले ने मारा

हफ़ीज़ जालंधरी

अब तो कुछ और भी अंधेरा है

हफ़ीज़ जालंधरी

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी

हम को मंज़िल ने भी गुमराह किया

हफ़ीज़ होशियारपुरी

राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

फिर से आराइश-ए-हस्ती के जो सामाँ होंगे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

नर्गिस पे तो इल्ज़ाम लगा बे-बसरी का

हफ़ीज़ होशियारपुरी

न पूछ क्यूँ मिरी आँखों में आ गए आँसू

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

हर क़दम पर हम समझते थे कि मंज़िल आ गई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

रह-ए-इरफ़ाँ में अपने होश को माइल समझते हैं

हफ़ीज़ फ़ातिमा बरेलवी

इक हुस्न-ए-तसव्वुर है जो ज़ीस्त का साथी है

हफ़ीज़ बनारसी

चले चलिए कि चलना ही दलील-ए-कामरानी है

हफ़ीज़ बनारसी

वो तो बैठे रहे सर झुकाए हुए

हफ़ीज़ बनारसी

कुछ सोच के परवाना महफ़िल में जला होगा

हफ़ीज़ बनारसी

हदीस-ए-तल्ख़ी-ए-अय्याम से तकलीफ़ होती है

हफ़ीज़ बनारसी

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