हम को मंज़िल ने भी गुमराह किया
रास्ते निकले कई मंज़िल से
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मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
न पूछ क्यूँ मिरी आँखों में आ गए आँसू
कहीं ये तर्क-ए-मोहब्बत की इब्तिदा तो नहीं
तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार हम ने किया
जब कभी हम ने किया इश्क़ पशेमान हुए
आज उन्हें कुछ इस तरह जी खोल कर देखा किए
आज की रात
कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई
राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे
नज़र से हद्द-ए-नज़र तक तमाम तारीकी