जब कभी हम ने किया इश्क़ पशेमान हुए
ज़िंदगी है तो अभी और पशेमाँ होंगे
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रौशनी सी कभी कभी दिल में
ग़म-ए-ज़माना तिरी ज़ुल्मतें ही क्या कम थीं
फिर से आराइश-ए-हस्ती के जो सामाँ होंगे
तिरी तलाश में जब हम कभी निकलते हैं
मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
दिल से आती है बात लब पे 'हफ़ीज़'
ये तमीज़-ए-इश्क़-ओ-हवस नहीं है हक़ीक़तों से गुरेज़ है
तमाम उम्र किया हम ने इंतिज़ार-ए-बहार
अगर तू इत्तिफ़ाक़न मिल भी जाए
तिरी तलाश है या तुझ से इज्तिनाब है ये
ग़म-ए-ज़िंदगानी के सब सिलसिले