अगर तू इत्तिफ़ाक़न मिल भी जाए
तिरी फ़ुर्क़त के सदमे कम न होंगे
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तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार हम ने किया
हम को मंज़िल ने भी गुमराह किया
तिरी तलाश में जब हम कभी निकलते हैं
गर उस का सिलसिला भी उम्र-ए-जावेदाँ से मिले
ग़म-ए-ज़माना तिरी ज़ुल्मतें ही क्या कम थीं
मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
आज की रात
जब कभी हम ने किया इश्क़ पशेमान हुए
बे-चारगी-ए-हसरत-ए-दीदार देखना
मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त