दिल में इक शोर सा उठा था कभी
फिर ये हंगामा उम्र भर ही रहा
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ऐसी भी क्या जल्दी प्यारे जाने मिलें फिर या न मिलें हम
हम को मंज़िल ने भी गुमराह किया
कहीं ये तर्क-ए-मोहब्बत की इब्तिदा तो नहीं
दिल से आती है बात लब पे 'हफ़ीज़'
कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई
मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई
मोहब्बत करने वाले कम न होंगे
जब कभी हम ने किया इश्क़ पशेमान हुए
ये दिलकशी कहाँ मिरी शाम-ओ-सहर में थी
ग़म-ए-ज़िंदगानी के सब सिलसिले
ग़म-ए-आफ़ाक़ है रुस्वा ग़म-ए-दिल-बर बन के
तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार हम ने किया