न ज़क़न है वो न लब हैं न वो पिस्ताँ न वो क़द
सेब ओ उन्नाब ओ अनार एक शजर से निकले
Gulzar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(809) Peoples Rate This
मार डाला तिरी आँखों ने हमें
याद रखने की ये बातें हैं बजा है सच है
जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा
दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई
दर-ब-दर मारा-फिरा मैं जुस्तुजू-ए-यार में
ग़ैर हँसते हैं फ़क़त इस लिए टल जाता हूँ
इस दौर में हर इक तह-ए-चर्ख़-ए-कुहन लुटा
काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ मुश्ताक़-ए-शहादत भी हूँ
बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा
आफ़्ताब अब नहीं निकलने का
डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में
वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ