Sad Poetry of Hatim Ali Mehr
नाम | हातिम अली मेहर |
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अंग्रेज़ी नाम | Hatim Ali Mehr |
याद रखने की ये बातें हैं बजा है सच है
याद में इक शोख़ पंजाबी के रोते हैं जो हम
तू ने वहदत को कर दिया कसरत
न ले जा दैर से का'बा हमें ज़ाहिद कि हम वाँ भी
मजमा' में रक़ीबों के खुला था तिरा जूड़ा
ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है
ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके
वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया
वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ
उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा
उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम
सर झुकाता नहीं कभी शीशा
पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया
नाला-ए-गर्म के और दम सर्द भरे क्या जिएँ हम तो मरे
न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए
मेरे ही दिल के सताने को ग़म आया सीधा
कूचा में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे
कोई ले कर ख़बर नहीं आता
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस
जो मेहंदी का बुटना मला कीजिएगा
ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं
इश्क़-ए-जान-ए-जहाँ नसीब हुआ
इस दौर में हर इक तह-ए-चर्ख़-ए-कुहन लुटा
हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम
गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही
गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था
ग़ैर हँसते हैं फ़क़त इस लिए टल जाता हूँ
गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है
डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में