Sharab Poetry of Hatim Ali Mehr
नाम | हातिम अली मेहर |
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अंग्रेज़ी नाम | Hatim Ali Mehr |
कविताएं
Ghazal 51
Couplets 38
Love 46
Sad 36
Heart Broken 43
Bewafa 6
Hope 22
Friendship 30
Islamic 27
Social 2
देशभक्तिपूर्ण 4
बारिश 1
ख्वाब 16
Sharab 19
जवाँ रखती है मय देखे अजब तासीर पानी में
फ़स्ल-ए-गुल आई तो क्या बे-सर-ओ-सामाँ हैं हम
ज़ुल्फ़ अंधेर करने वाली है
ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके
वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया
वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ
उस ज़ुल्फ़ के सौदे का ख़लल जाए तो अच्छा
उस का हाल-ए-कमर खुला हमदम
सर झुकाता नहीं कभी शीशा
साक़ी है न मय है न दफ़-ओ-चंग है होली
पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम
गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था
डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में
दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका
चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं
ब-ख़ुदा हैं तिरी हिन्दू बुत-ए-मय-ख़्वार आँखें
आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक और