हातिम अली मेहर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हातिम अली मेहर (page 3)

हातिम अली मेहर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हातिम अली मेहर (page 3)
नामहातिम अली मेहर
अंग्रेज़ी नामHatim Ali Mehr

ईज़ाएँ उठाए हुए दुख पाए हुए हैं

इश्क़-ए-जान-ए-जहाँ नसीब हुआ

इस दौर में हर इक तह-ए-चर्ख़-ए-कुहन लुटा

हम से किनारा क्यूँ है तिरे मुब्तला हैं हम

गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही

गुल-बाँग थी गुलों की हमारा तराना था

ग़ैर हँसते हैं फ़क़त इस लिए टल जाता हूँ

गरेबाँ हाथ में है पाँव में सहरा का दामाँ है

डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में

दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका

दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई

दीदा-ए-जौहर से बीना हो गया

दरिया तूफ़ान बह रहा है

छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम

चैन पहलू में उसे सुब्ह नहीं शाम नहीं

बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

बुतों का ज़िक्र कर वाइ'ज़ ख़ुदा को किस ने देखा है

बुतों का सामना है और मैं हूँ

ब-ख़ुदा हैं तिरी हिन्दू बुत-ए-मय-ख़्वार आँखें

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

बदन-ए-यार की बू-बास उड़ा लाए हवा

अजब है 'मेहर' से उस शोख़ की विसाल का वक़्त

ऐ 'मेहर' जो वाँ नक़ाब सर का

आलम-ए-हैरत का देखो ये तमाशा एक और

आफ़्ताब अब नहीं निकलने का

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