सबा जो बड़ी बाग़ वाली हुई है
तुम्हारी गली की निकाली हुई है
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(804) Peoples Rate This
बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है
पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा
पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस
छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम
न ज़क़न है वो न लब हैं न वो पिस्ताँ न वो क़द
सारी इज़्ज़त नौकरी से इस ज़माने में है 'मेहर'
ऐन-ए-का'बा में है मस्तों की जगह
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
कूचे में जो उस शोख़-हसीं के न रहेंगे
दिल ले गई वो ज़ुल्फ़-ए-रसा काम कर गई
हम 'मेहर' मोहब्बत से बहुत तंग हैं अब तो