हम भी बातें बनाया करते हैं
शेर कहना मगर नहीं आता
Anwar Masood
Gulzar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Love Poetry
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Sad Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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वो ज़ार हूँ कि सर पे गुलिस्ताँ उठा लिया
ब-ख़ुदा हैं तिरी हिन्दू बुत-ए-मय-ख़्वार आँखें
सबा जो बड़ी बाग़ वाली हुई है
करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस
तिरी तलाश से बाक़ी कोई मकाँ न रहा
पुतली की एवज़ हूँ बुत-ए-राना-ए-बनारस
करते हैं शौक़-ए-दीद में बातें हवा से हम
न दिया बोसा-ए-लब खा के क़सम भूल गए
दोपहर रात आ चुकी हीला-बहाना हो चुका
डुबोएगी बुतो ये जिस्म दरिया-बार पानी में
छोड़ेंगे गरेबाँ का न इक तार कभी हम
कू-ए-क़ातिल में बसेगी नई दुनिया इक और