पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू
ठहर गया तो इक क़तरा सा बह निकला तो दरिया आँसू
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हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई
इक दामन में फूल भरे हैं इक दामन में आग ही आग
मोहब्बत को बहुत होती है ग़ैरत
न रहबर ने न उस की रहबरी ने
कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए
हिज्र में यूँ बहते हैं आँसू
जब तिरा आसरा नहीं मिलता
सुकूँ-अफ़ज़ा बहुत है दर्द-ए-उल्फ़त
कोई हम से ख़फ़ा सा लगता है
वो निकले हैं सरापा बन-सँवर कर