सुकूँ-अफ़ज़ा बहुत है दर्द-ए-उल्फ़त
क़रार अब उम्र भर आए न आए
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रही दिल की दिल में ज़बाँ तक न पहुँची
साथ तेरा रहा नहीं बाक़ी
न रहबर ने न उस की रहबरी ने
शाम-ए-ग़म की सहर न हो जाए
मोहब्बत को बहुत होती है ग़ैरत
हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई
कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
दिलों को तोड़ने वालो ख़ुदा का ख़ौफ़ करो
जब तिरा आसरा नहीं मिलता
इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू