जिन्न Poetry (page 22)

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो

इब्न-ए-इंशा

तूफ़ाँ कोई नज़र में न दरिया उबाल पर

हुसैन माजिद

ठहरेगा वही रन में जो हिम्मत का धनी है

हुरमतुल इकराम

क़यामतें गुज़र गईं रिवायतों की सोच में

हुमैरा रहमान

वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है

हुमैरा राहत

मिलने को है खमोशी-ए-अहल-ए-जुनूँ की दाद

होश तिर्मिज़ी

वो तक़ाज़ा-ए-जुनूँ अब के बहारों में न था

होश तिर्मिज़ी

लाएगा रंग ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ देखते रहो

होश तिर्मिज़ी

देखे हैं जो ग़म दिल से भुलाए नहीं जाते

होश तिर्मिज़ी

जिसे मिलें वही तन्हा दिखाई देता है

हीरानंद सोज़

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

अन-कही

हिमायत अली शाएर

पिंदार-ए-ज़ोहद हो कि ग़ुरूर-ए-बरहमनी

हिमायत अली शाएर

इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और

हिमायत अली शाएर

अपना अंदाज़-ए-जुनूँ सब से जुदा रखता हूँ मैं

हिमायत अली शाएर

आए थे तेरे शहर में कितनी लगन से हम

हिमायत अली शाएर

दिल फ़ुर्क़त-ए-हबीब में दीवाना हो गया

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

दुआ ही वज्ह-ए-करामात थोड़ी होती है

हिजाब अब्बासी

निय्यत अगर ख़राब हुई है हुज़ूर की

हीरा लाल फ़लक देहलवी

ज़िक्र-ए-जानाँ कर जो तुझ से हो सके

हातिम अली मेहर

वारिद कोह-ए-बयाबाँ जब में दीवाना हुआ

हातिम अली मेहर

पूछेगा जो वो रश्क-ए-क़मर हाल हमारा

हातिम अली मेहर

पोशाक-ए-सियह में रुख़-ए-जानाँ नज़र आया

हातिम अली मेहर

करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस करें क्या हवस

हातिम अली मेहर

गुज़रा अपना पस-ए-मुर्दन ही सही

हातिम अली मेहर

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